बरसों लगी हुई है -
( तर्ज : अरे कोण कोण येतो )
बरसों लगी हुई है ,
प्रभु - प्रीत यह हमारी ।
जीते इसीके कारण ,
बस नीत यह हमारी ॥१ ॥
उद्योग है तो येही ,
खेती कहो तो येही ।
प्रभु - नाम को रिझाना ,
अरु रीत है हमारी ॥२ ॥
बनता है जितना कहते ,
चारित्र्य - भक्ति - सेवा ।
कोई तो मानते हैं ,
कोइ ना सुने हमारी ॥३ ॥
सब देशमें ही चक्कर ,
पक्षीकी तरह चलता ।
साथी भी कहीं रहते ,
यहि जीत है हमारी ॥ ४ ॥
अबतक यही चली है ,
सेवा ये मानवों की ।
तुकड्या कहे प्रभु है ,
परतीत यह हमारी ! ॥ ५ ॥
इटारसी , दि . १७-४-६२
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